कोरबा : छत्तीसगढ़ में सरकार भले ही जीरों टाॅलरेंस का दावा करती हो, लेकिन जमीन पर ऐसा होता नजर नही आ रहा है। जीं हां कुछ ऐसा ही मामला कोरबा जिले के आदिवासी विकास विभाग से जुड़ा है। यहां आदिवासी बच्चों के उत्थान के लिए केंद्र सरकार से मिले करोड़ों रूपये पर पहले तो जवाबदार अफसरों ने सेंध लगा दी, फिर इस भ्रष्टाचार के सारे दस्तावेज कार्यालय से गायब करा दिये। लेकिन इस पूरे मामले में शिकायत के दो साल बाद भी विभाग के अफसरों ने आफिस से महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब होने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराना जरूरी नही समझा। अब जब केंद्र से इस पूरे मामले में जानकारी मांगी जा रही है, तब आनन फानन में भ्रष्टाचार में लिप्त ठेकेदार और डाटा एंट्री आपरेटर के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराया गया है, जबकि भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए सचिव को पत्र लिखा गया है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला भ्रष्टाचार के मामले को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहता है। फिर चाहे मामला कोयला परिवहन में लेवी का हो, डीएमएफ फंड में भ्रष्टाचार का हो या फिर आदिवासी बच्चों के हक पर डाका डालने का ….. भ्रष्टाचार के तार कोरबा से जुड़ ही जाते है। भ्रष्टाचार का कुछ ऐसा ही मामला पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में आदिवासी विकास विभाग में किया गया। केंद्र सरकार द्वारा आदिवासी विकास विभाग को संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत वर्ष 2021-22 में 6 करोड़ रूपये का आबंटन किया गया था। वर्ष 2023 में मिले इस फंड पर तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर और उनके अधिनस्थ अफसरों ने सेंध लगा दी।
करीब 4 करोड़ रूपये के छात्रावास मरम्मत और नवीनीकरण के कार्यो के लिए आबंटन कर 4 चहेते फर्मो को 34 काम सौंप दिये गये। हद तो तब हो गयी, जब इन सारे छात्रावासों में महज पेंटिंग और मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति कर सारे पैसों का भुगतान भी कर दिया गया। भ्रष्टाचार करोड़ों रूपये का था, लिहाजा इस खेल में शामिल आफिस स्टाफ के साथ मिली भगत कर अधिकारियों ने सभी 34 कार्यो से संबंधित सारे दस्तावेजों की मूल नस्ती आफिस से ठिकाने लगा दी, ताकि इस भ्रष्टाचार का सुराग किसी के हाथ न लग सके। इस पूरे मामले की जब PMO में शिकायत की गयी, तब पूर्व कलेक्टर संजीव कुमार झा ने टीम गठित कर जांच के आदेश दिये थे। लेकिन कलेक्टर के तबादला हो जाने के बाद ये पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस दौरान माया वारियर का भी कोरबा से तबादला हो गया।
2 साल बाद भी आफिस से गायब महत्वपूर्ण दस्तावेज प्रकरण में पुलिस में FIR नहीं
कोरबा के आदिवासी विकास विभाग से करोड़ों रूपये के कार्यो के दस्तावेज पिछले 2 साल से भी अधिक वक्त से गायब है। कलेक्टर अजीत वसंत के आदेश के बाद गठित जांच टीम ने भी पाया कि आफिस से सारे महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब है। बावजूद इसके इस गंभीर प्रकरण पर किसी भी अधिकारी ने पुलिस में FIR दर्ज कराना जरूरी नही समझा। साफ है कि यदि इस मामले में पुलिस निष्पक्ष जांच करती है, तो आफिस के ही संबंधित सेक्शन के लिपिक और अन्य स्टाफ जांच के दायरे में आयेंगे। जो एक वक्त तक पूर्व सहायक आयुक्त माया वारियर के इशारे पर देर रात तक कार्यालय में काम किया करते थे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यहीं है कि आखिर विभाग के जवाबदार अफसर दस्तावेज गायब होने के प्रकरण में पुलिस में FIR दर्ज कराने से क्यों बच रहे है ? क्या अफसर भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त किसी स्टाफ को बचाने की कोशिश में है ? या फिर मामला कुछ और ही है, जिसे पुलिस तक जाने नही देना चाहते ?
PMO में शिकायत के बाद बढ़ा दबाव, तब ठेका कंपनियों पर कराया FIR
कोरबा में आदिवासी विकास विभाग में हुए इस भ्रष्टाचार के मामले PMO में शिकायत की गयी थी। शिकायत के बाद मौजूदा कलेक्टर अजीत वसंत ने टीम गठित कर जांच के आदेश दिये। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत की अध्यक्षता में इस भ्रष्टाचार की जांच की गयी। जांच में पाया गया कि अनुच्छेद 275(1) के तहत मिली राशि से कराये गये कार्यो से संबंधित निविदा अभिलेख, कार्य ओदश, प्राक्कलन, तकनीकि स्वीकृति, माप पुस्तिका, देयक व्हाउचर से संबंधित मूल नस्ती एवं अभिलेख कार्यालय में उपलब्ध नही मिलें। वहीं जांच में 48 लाख के 4 कार्य आज तक अप्रारंभ मिले, जबकि 80 लाख रूपये के फर्जी भुगतान बगैर कार्य कराये फर्मो को कर दिया गया।
इन सारे खुलासे के बाद आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर ने कलेक्टर अजीत वसंत के निर्देश पर तत्कालीन सहा.आयुक्त माया वारियर, विभाग के तत्कालीन एसडीओं अजीत कुमार तिग्गा, तत्कालीन उप अभियंता राकेश वर्मा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए सचिव को पत्र लिखा गया है। सचिव से आदेश के बाद भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों के खिलाफ जहां वैधानिक कार्रवाई कर एक्शन लिया जायेगा। वहीं कलेक्टर के आदेश पर इस भ्रष्टाचार में शामिल 4 फर्मो और आदिवासी विकास विभाग के डाटा एंट्री आपरेटर कुश कुमार देवांगन के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज कराया गया है। लेकिन सवाल यहां भी वहीं है, आखिर जांच टीम ने अपनी जांच में सारे दस्तावेज कार्यालय से गायब पाये, तो फिर विभाग के जवाबदार लिपिकों पर कार्रवाई क्यों तय नही किया गया ? दस्तावेज गायब होने के प्रकरण में अफसर पुलिस में FIR दर्ज कराने से क्यों कतरा रहे है ? ये सुलगता सवाल है, जो कि जिला प्रशासन की जांच और आदिवासी विकास विभाग की कार्य प्रणाली पर एक बार फिर सवालिया निशान लगा रहा है।